Friday, October 14, 2011

घर की खिड़की से हर मौसम कितना सुहाना लगता है...

"घर की खिड़की से हर मौसम कितना सुहाना लगता है " ...लता सोचने लगी !

बाहर बारिश की बूँदें टप-टपाटप छज्जे पर पड़ती एक लय बना रही थीं !


"लोग तो यूँही कहते हैं कि इस शहर में बरसात का मौसम बहुत ही भयानक होता है ! यह तो मनमोहक है! रोमांचक ! "


लता को इस शहर में आये कुछ ही दिन हुए थे ! जिस शहर में रहने को छत नहीं मिलती वहां उसके पती ने एक अच्छा ख़ासा घर ढूंढ लिया था!

केवल एक बरामदे की कमी लता को हमेशा खलती थी!


परिवार के तीनों सदस्य इस शहर के व्यस्त जीवन में रच बस गए थे ! विनोद का कार्यालय शहर की भव्यता को देख बहुत पास ही था ! और डिम्पी की पाठशाला

भी दूर नहीं थी!

अपने पांचवे माले के घर की खिड़की पर सर टिका लता अपने मनपसंद मौसम का आनंद ले रही थी ! खिड़की पर लगे लोहे के जंगले से हाथ बाहर निकाल कुछ बूँदें अपनी हथेली में संजो ली और मुंह पर उड़ेल दी ...."ओह ! सुरमई संगीत सी हैं ये बूँदें ! " एक प्यारी सी मुस्कान लता के होठों से अटखेलियाँ कर रही थी ! उसका रोम रोम कविता रचना चाह रहा था!


"ट्रिन-ट्रिन ,ट्रिन-ट्रिन ...!"

यकायक बजे टेलेफोन की घंटी से लता चौंक गई! इधर उधर देखने लगी !


"ट्रिन-ट्रिन ,ट्रिन-ट्रिन ...!"


"हेल्लो ..?!"

"हेल्लो लता ! "...कुछ उत्तेजित स्वर में विनोद की आवाज़ सुन लता विचलित हुई !

"क्या...क्या हुआ विनोद?"

"लता ..लता में यहाँ बारिश में फंसा हूँ ! बहुत देर से तुम्हे फ़ोन लगाने की कोशिश कर रहा हूँ पर नेटवर्क ही नहीं था! मुझे थोडा समय और लगेगा ! तुम घबराना मत! "

"पर विनोद इस बारिश में तुम दफ्तर से निकले ही क्यूँ ?क्या ज़रुरत थी ? "


कुछ झल्लाते हुए विनोद ने जवाब दिया ...

"अपनी मर्ज़ी से नहीं निकला लता ! दफ्तर बंद कर दिए गए हैं! तूफ़ान आने का डर...!" टेलीफ़ोन कट गया!


लता स्तब्ध खड़ी रह गई !उसे यह सब समझ ही नहीं आ रहा था ! उसने खुद को संभाल कर विनोद का नंबर लगाया ! फ़ोन बंद था!

जो मुस्कान थोड़ी देर पहले उसके होठों पर थी वह अब नदारद हो चुकी थी! अब तो परेशानी की रेखाएं उसके ललाट पर उभर आईं थीं !


उस ने झट पट टीवी चलाया !

'तूफ़ान आने की सम्भावना है ! सभी रास्तों में जाम लगा है ! सड़कों पर नदिया बह रही है! सरकार ने सभी दफ्तरों एवं पाठशालाओं को बंद करने के निर्देश दे दिए हैं ! "

"पाठशालाओं को बंद करने का ...?!"

लता घबराते हुए फ़ोन बुक पर डिम्पी के स्कूल का नंबर ढूँढने लगी !


"जी हाँ ! स्कूल बंद कर दी गई है ! और सभी बच्चे अपनी अपनी बसों में बैठ चुके हैं ! आपके घर के नीचे आकर आपको काल कर दिया जाएगा ! "

इतनी भावविहीन आवाज़ सुन लता का गुस्सा चरम सीमा तक पहुँच गया था !

"आप लोगों ने इतने छोटे छोटे बच्चों को इस बारिश में सड़कों पर निकाल दिया ?

आप लोग इतने गैरजिम्मेदार कैसे हो सकते हैं! बारिश रुकने का इंतज़ार नहीं कर सकते थे आप लोग ?"

"मैडम बारिश तो पता नहीं कब बंद होगी ! आप चिंता न करें ! आपकी बेटी आप तक सही सलामत पहुँच जाएगी ! "


लता निर्जीव सी सोफे में जा धंसी !

लाल लाल आँखों में न जाने कितने नकारात्मक विचारों को उसने जीवंत कर लिया था !

समाचारों में बार बार दिखाए जाने वाले दृश्यों से वह और विचलित हो रही थी ! गुस्से में जा कर उसने टीवी बंद कर दिया ! चरों और के सन्नाटे में बारिश की बूंदों का संगीत कब शोर में बदल गया पता नहीं ! उसने बारिश को कोसते हुए फट से जाकर खिड़की बंद कर दी !


"कैसी मनहूस बारिश है ! बंद होने का नाम ही नहीं ले रही ! उफ़! "

घंटा भर भी उसने कैसे निकाला उसे पता नहीं ! बार बार आंसुओं को निगल रही थी ! "कुछ नहीं होगा ! सब अच्छा होगा ! "


"टिंग टोंग..!"

दरवाज़े की घंटी बजते ही लता सुन्न सी हो गई ! अब तक वह इतना कुछ सोच चुकी थी कि हर तरह की आशंकाएं उसे घेर रहीं थीं !


"टिंग टोंग ...टिंग टोंग !"


अपने विचारों से बाहर आ उसने फट से दरवाज़ा खोला !


सामने विनोद खड़े थे ! पूरे भीगे हुए !बहुत थकान थी उनके चेहरे पर ! मगर घर लौट आने का आनंद भी !

विनोद को सामने देख लता खुद को रोक ही नहीं पाई ! और जोर जोर से रोने लगी

इतनी देर से जो आंसू वो पी रही थी वे सब एक साथ बाहर आने लगे !

विनोद मुस्कुराने लगा! और लता को अपनी बाहों में भर लिया !


"विनोद... डिम्पी...."

"मैंने बात की है अभी अभी बस के कन्डक्टर से! कुछ देर में आ जाएगी ! चलो नीचे जीने में चल कर खड़े होते हैं ! डिम्पी भी घबरा गई होगी ! हमें देख कर खुश हो जाएगी ! "


विनोद ने कपडे बदले और वो दोनों नीचे जीने की सीढियों पे जा बैठे !

विनोद के पास होने से लता की सारी चिंताएं दूर हो चुकीं थीं ! विनोद के धैर्य और सहनशीलता उसके मुकाबले कहीं ज्यादह थी ! अब तो उसे डिम्पी के आने की प्रतीक्षा भर थी बस !


फ़ोन बजा !

"सर ! बस सोसाइटी के बाहर खड़ी है! आप अपनी बेटी को आकर ले जाएं ! "

"हाँ हाँ ! मैं आता हूँ ! " विनोद ने फ़ोन काटते हुए लता से कहा ! "तुम बैठो मैं ले आता हूँ ! "

लता ने हाँ में सर हिला दिया !


कुछ क्षणों के बाद पानी में उछलती कूदती डिम्पी दिखाई दी ! लता के मुख पर फिर से प्यारी सी मुस्कान खेल गई ! डिम्पी खूब नहाई उस दिन बारिश में !

जीने की सीढियों पर बैठे विनोद और लता उसे निहार रहे थे !

"अब तुम एक अच्छी सी कविता लिखना इस मौसम पर !" विनोद ने लता के काँधे पर हाथ रखते हुए प्यार से बोला !

"हाँ ! कविता तो लिखूंगी ही ! "

लता ने मुस्कुराते हुए कहा ,

"घर की खिड़की से तो हर मौसम सुहाना लगता है ! मगर वो आम आदमी जो अपनी रोज़मर्रा की ज़िन्दगी में इन बदलते मौसमों के थपेड़े खाता है उसके दुःख को समझना बहुत मुश्किल है ....!"



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