Tuesday, May 3, 2011

एक किस्सा

बात उन दिनों की है जब मैं स्नातक की पढ़ाई के लिए अपने जन्म स्थान पहुँच गई थी!छोटा शहर और बहुत से रिश्तेदार! वह वक़्त बहुत ही रोमांचपूर्ण रहा है मेरे जीवन में!
उन्ही दिनों एक ख्याति प्राप्त लेखक ,जो मेरे पिताजी के मित्र भी है, वहीं रहते थे! बस फिर क्या था,जितना मैने उनकी दिनचर्या का अनुसरण किया उतना तो मैने अपने स्नातक के विषयों का भी ना किया होगा! घंटो उनके घर पर धावा बोले रहती थी और ना जाने कैसे कैसे उट पटांग प्रश्नों की झड़ी लगाए रखती थी! ये अलग बात है की उन्होने कभी अपने मुख पर क्रोध या असुविधा का भाव नहीं आने दिया और उसके लिए मैं उनकी आज तक आभारी हूँ!
ऐसे ही एक दिन जब मैं उनके घर अपने प्रश्नो की पोटली ले पहुँची थी तो उनके एक प्रश्‍न ने मुझे विचलित कर दिया था! वे यकायक ही पूछ बैठे थे,
"क्या तुम्हारे घर पर महाभारत है?"
हें!!
मैं विस्मयता से सोचने लगी थी की इन्हे कैसे पता मेरे घर मैं महाभारत है? किसने बताया होगा?वैसे सही है ऐसी बातें कोई कितनी दबा सकता है!मुझे पता नहीं चला था की मेरी स्वास तीव्र गति से चलने लगी थी! क्या उत्तर दूं इसी उधेड़बुन में थोड़ा हंस कर हाँ में सर हिला दिया! और मन ही मन उस संदेशवाहक को कोस रही थी जिसने मेरे घर के महाभारत की बात पूरे शहर में फेला दी थी!मैं नज़रें झुका कर विचार मग्न ही थी वे फिर बोल पड़े,
"तो उसे पढ़ा करो!"...
क्या
,"हाँ! उसमें यह लिखा है की एक कवि को क्या क्या नहीं करना चाहिए!"
ओह!!
अब क्या कह सकती थी! अब कैसे बोलती की मेरे घर में वो ग्रंथ तो है ही नहीं....अपने आप पर हंसते हुए चुप सी बैठी रही!

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