Tuesday, September 6, 2011

माँ की ममता....

हम ने सुना था की ऊँचे उस पहाड़ की चोटी पर एक मंदिर है ! वहां जो भी श्रद्धालु जाते हैं वे हर मुराद पूरी पाते है ! मुझे भी जाना था! उसी मंदिर में घंटियों की नाद के बीच कुछ माँगना था! ये अलग बात है की जब मेरे पति ने पूछा की क्या माँगना है तो में निरुत्तर थी! क्या माँगना है? कुछ भी तो नहीं ! सब कुछ तो है मेरे पास ! तो क्यूँ जाना है वहां ?
जाना तो है ! मन में जो ठान ली है! चलो ! हम दोनों निकल पड़े नंगे पैर उस मंदिर की ओर!" जय राम श्री राम" का उदघोश करते, निकल पड़े ! हमारे साथ श्रधालुओं का एक झुण्ड सा था! सभी को कुछ माँगना था ! बस मैं ही तो थी जो ये निश्चय नहीं कर पाई थी की आखिर माँगना क्या है !
उसी झुण्ड में एक अधेड़ उम्र की औरत भी थी! अकेली ! उम्र के इस पड़ाव पे भी वो हिम्मत जुटा पाई थी इस पहाड़ी को चढ़ने की ये बहुत अचरज की बात थी! उन के प्रति हम दोनों का ही मन उत्तरदायित्व ले बैठा था ! माँ जी माँ जी कर हम ने उन को हर मुमकिन सहारा देना चाहा! वे जहाँ जहाँ रूकती हम भी रुक जाते ! पता नहीं किस कारणवश वे इस दुर्गम मार्ग पर निकल पड़ी ! बहुत पूछने पर वे फिर रो ही पड़ीं !
वो मेरा इकलौता बेटा है ,मृत्यु शय्या पर लेटा है! जाने कब टूट जाए उसकी साँसों का धागा ! मैंने भी तो आज तक इश्वर से कुछ नहीं माँगा ! डॉक्टर कहते हैं इश्वर ही कुछ कर सकते हैं ! इश्वर ही तो हैं जो मेरे दुःख हर सकते हैं!
हम दोनों मन में ठान चुके थे अब तो इन माँ जी को दर्शन करवा लाना हमारा कर्त्तव्य है! वे थकती तो हम भी रुकते वे चलती तो हम भी चलते ! धीरे धीरे मंदिर की घंटियों का नाद हल्का हल्का सुनने में आया! हम प्रफुल्लित हुए ओर माँ जी की आँखों में अश्रुधारा बहते देख थोड़े से भयभीत हुए! उन्हें उत्साह दिला कर फिर से आगे बढ़ने लगे ! पास आते मंदिर की घंटियों की गूँज में,"जय राम श्री राम " के बढ़ते उदघोश में हम खोने लगे! दर्शन कर ने को जाने कहाँ से एक जन सैलाब उमड़ पड़ा था !
जैसे तैसे माँ जी के हाथ थाम कर उन को दर्शन करवाए ! इस आपा धापी में मुझ को क्या माँगना था याद ही न आए! बस इश्वर से माँ जी के बेटे के लिए की प्रार्थना !
सब से बड़ा प्रश्न था उन को इस भीड़ से बाहर निकालना ! हाथ पकड़ कर उनको ज्यूँ त्यूं बाहर खींच रहे थे ! लेकिन जाने कैसे हाथ छुट गया ! हर जगह ढूँढा पर मन रूठ गया ! भारी मन ले नीचे उतर रहे थे ! आने जाने वालों को रुक कर पूछ रहे थे ! यही नियति है यही सोच कर पहाड़ी से नीचे उतरने लगे !
देखा थोडा नीचे कुछ लोग झुण्ड बना कर खड़े हुए थे! मन आशंकित हुआ ! जिज्ञासा जागी के क्या हुआ! उस झुण्ड में घुस कर देखा !
माँ जी ! चिर निद्रा में सोई हुईं ! चहरे पर कोई भाव नहीं थे ! अपितु सब ने उठाना चाहा था उन को ! पर नाकाम रहे थे ! लगता था जग झंझट से छुट गईं थीं! आह! मेरे मन से चीत्कार उठी थी! अपने बेटे को जीवन दान दिलाने आई खुद अपना जीवन गवां बैठी ! किन्तु माँ की ममता के पराकाष्ठा तक पहुँचने की कथाओं में ये भी तो एक कथा ही थी ...केवल!

6 comments:

  1. मन को छूते हुये शब्‍द ।

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  2. माँ तुझे सौ सौ सलाम .....संवेदनशील रचना , आभार

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  3. भावपूर्ण रचना.... कभी समय मिले तो आयेगा मेरी पोस्ट पर आपका स्वागत है। http://mhare-anubhav.blogspot.com/

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  4. माँ की ममता का कोई मोल नही..भावपूर्ण रचना.

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